भारतीय संविधान और सुप्रीम कोर्ट की गलती
भारतीय संविधान और सुप्रीम कोर्ट की गलती सुनकर शायद आप चौंक जाएं या फिर,
पहली नजर में आपको विश्वास ही न हो लेकिन सच यही है कि
भारतीय संविधान और उसका महान संरक्षक सुप्रीम कोर्ट भी गलती करते हैं।
गलती भी छोटी मोटी नहीं बल्कि ऐसी जिनका बेहद दूरगामी परिणाम संभव है।
अगर आप भी यह जानना चाहते हैं कि हमारे संविधान में
कुछ विसंगति की वजह से सुप्रीम कोर्ट गलती करता है,
तो फिर आपको बने रहना होगा मेरे साथ।
यहां पर भारतीय संविधान और सुप्रीम कोर्ट की बात की जा रही है।
अगर आप इसकी वजह नहीं जानते तो जान लीजिये,
हमारे संविधान में जो कुछ भी लिखा है उसी के अनुसार कानून का पालन करवाना या
उसी के अनुरूप निर्णय देना सुप्रीम कोर्ट का काम है
और भारत के नागरिकों को ज्यादा से ज्यादा व्यवस्था से लाभ हो यह भारत के संविधान का काम है।
लेकिन जब एक तरफ संविधान के दुरुस्त न होने से लोगों की व्यवस्था गड़बड़ हो
और दूसरी तरफ अच्छे कानून न होने से उनकी व्याख्या सुलझाने के लिए पर्याप्त न हो
तो आप क्या कहेंगे?
यहां पर आज इस लेख में हम आपको यह बताने की कोशिश करेंगे
कि किस तरह दुरस्त संविधान न होने की वजह से सुप्रीम कोर्ट कैसे एक ऐसा फैसला करता है,
जिसके दूर गामी नकारात्मक परिणाम किसी को भी भोगने पड़ सकते हैं।
संविधान और कोर्ट ने क्या गलत किया?
भारतीय संविधान और सुप्रीम कोर्ट की गलती पर बात करें,
तो सच में यकीन ही नहीं होता कि इनसे भी कुछ गलत हो सकता है ।
मगर हुआ है।
आज वही आपके सामने रखना है ।
सुप्रीम कोर्ट आफ इंडिया ने जनवरी 2018 में एक फैसला दिया है।
समस्या इसी में है आइए इसकी पड़ताल करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कोई महिला किसी अन्य जाति के पुरुष से शादी करती है तब भी उसकी जाति नहीं बदल सकती।
यानी अगर दलित महिला ठाकुर से शादी करती है तो वह ठाकुर कभी नहीं बन सकती।
और अगर कोई ठाकुर महिला किसी दलित से शादी करती है तो वह दलित कभी नहीं बन सकती।
यह मामला एक सामान्य जाति की महिला का दलित से शादी करने का है।
उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में साफ साफ कह दिया कि जाति जन्म से तय होती है शादी से नहीं ।
आइए जानें मामला क्या है
हुआ यह कि पश्चिमी यूपी के बुलंदशहर में एक अग्रवाल लड़की ने,
जाटव लड़के वीर सिंह से शादी कर लिया।
इसके बाद सुनीता नाम की इस लड़की ने 1991 में जाति प्रमाण पत्र के लिए जिलाधिकारी बुलंदशहर के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया।
इसी जाति प्रमाण पत्र में आधार पर सुनीता की केंद्रीय विद्यालय में नौकरी लग गई।
नौकरी आरक्षित कोटे के तहत थी ।
अचानक नौकरी के 21 साल बाद सुनीता को बर्खास्त कर दिया गया।
क्योंकि किसी ने इनके खिलाफ सूचना दी कि सुनीता ने गलत ढंग से जाति प्रमाण पत्र प्राप्त किया है।
सुनीता वास्तव में सामान्य जाति की है लेकिन उसने अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र दिया है।
यहां हुई संविधान से गलती
यहां पर संविधान से गलती यह हुई है कि संविधान में यह कहीं नहीं लिखा है कि पत्नी की जाति पति की जाति हो जाती है
जबकि हकीकत यही है कि जैसे ही किसी लड़की की शादी होती है उसका उपनाम तक बदल जाता है।
लेकिन चूंकि संविधान में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है
इस लिए सुप्रीम कोर्ट ने भी गलती की ।
इसमें सुप्रीम कोर्ट की गलती यह है कि उसने जाति का आधार केवल जन्म मानकर यह अमानवीय कार्यवाही की ।
यहां संविधान, कानून और परम्परा सब आपस में टकराते नजर आ रहे हैं।
यही संविधान और कानून की गलती है।
यहां पर होना क्या चाहिए
यहां पर होना यह चाहिए था कि सुनीता की नौकरी नहीं जानी चाहिए थी ।
विद्वान न्यायाधीश जानते हैं कि जो आरक्षण आरक्षित वर्ग को दिया गया है,
वह जातिगत पीड़ा भोगने की एवज में दिया गया है।
सुनीता ने भी वही जाति गत पीड़ा भोगा है।
फिर दूसरी तरफ हम भारतीय समाज से जाति को खत्म करना चाहते हैं ,
अत:हमको जाति टूटे इसके लिए लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए ।
यानी अगर कोई जनरल किसी ओबीसी, एस सी, एसटी से शादी करे 0
तो उसे प्रोत्साहित करते हुए उस लाभकारी जाति का प्रमाण पत्र देना चाहिए।
यहां बिल्कुल उल्टा किया गया है।
अब मुझे संविधान और सुप्रीम कोर्ट बताए क्या हम संविधान में ऐसे खास प्रावधान नहीं कर सकते,
ताकि अपने से निम्न जाति के साथ लोग वैवाहिक संबंथ के बारे में भी लोग सोचने लगें।
मेरी नजर में यही है हमारे संविधान और सुप्रीम कोर्ट की गलती
धन्यवाद
KPSINGH19072018